‘अत्त दीपो भव’… अपने दीपक स्वयं बनो. उजाला अंदर से हो, बाहर की रोशनी से नहीं.

‘अत्त दीपो भव’… अपने दीपक स्वयं बनो.
उजाला अंदर से हो, बाहर की रोशनी से नहीं.
भीतर का अंधेरा बाहर के दीयों से नहीं कटता है.
गौतम बुद्ध कहते है…किसी दूसरे के उजाले में चलने की बजाय अपना प्रकाश ,अपनी प्रेरणा खुद बनो. खुद तो प्रकाशित हों ही, दूसरों के लिए भी एक प्रकाश पूंज की तरह जगमगाते रहो…
तथागत बुद्ध के महा परिनिर्वाण से कुछ समय पहले उनके प्रिय शिष्य आनंद ने धम्म के भविष्य की चिंता करते हुए बुद्ध से पूछा कि जब सत्य का मार्ग दिखाने के लिए पृथ्वी पर आप या आप जैसा कोई नहीं होगा तब हम कैसे अपने जीवन को दिशा दे सकेंगे?
तब बुद्ध ने कहा – “अत्त दीपो भव”
अपना दीपक स्वयं बनो. कोई भी किसी के पथ के लिए हमेशा साथ नहीं दे सकता केवल आत्म ज्ञान के प्रकाश से ही हम सत्य के मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं.
शाक्यमुनि बुद्ध ने आगे कहा,. तुम मुझे अपनी बैसाखी मत बनाना. तुम यदि चल नहीं सकते , और मेरी बैसाखी के सहारे चल लिए लेकिन कितनी दूर चलोगे ? मंजिल तक नहीं पहुंच पाओगे. आज मैं साथ हूं, कल मैं साथ न रहूंगा, फिर तुम्हें अपने ही पैरों पर चलना है.
‘मेरे साथ की रोशनी से मत चलना क्योंकि अंधेरे जंगल में थोड़ी देर का ही साथ हो पाएगा. तुम मेरी रोशनी में थोड़ी देर रोशन हो लोंगे, फिर हमारे रास्ते अलग हो जाएंगे. मेरी रोशनी मेरे साथ होगी, तुम्हारा अंधेरा तुम्हारे साथ होगा.
इसलिए अपनी रोशनी पैदा करो. मैं तो सिर्फ मार्ग बता सकता हूं ,खुद के बनाए उजाले में मंजिल तक चलना तो तुम्हें ही पड़ेगा.अपने दीपक स्वयं बनो. धम्म को अपने अनुभव से जानो, मुझसे पहले भी बुद्ध हुए और भविष्य में भी होंगे. हर व्यक्ति बुद्धत्व को प्राप्त कर सकता है.’
…. अत्त दीपो भव …..
जिसने देखा, उसने जाना
जिसने जाना, वो पा गया
जिसने पाया, वो बदल गया,
और यदि नहीं बदला तो समझो कि उसके जानने में कोई कमी रह गई.
बुद्ध ने मानव को जैसी स्वतंत्रता दी वैसी किसी और ने नहीं दी. उन्होंने किसी धर्म, संप्रदाय, पंथ की स्थापना भी नहीं की. न कभी कहा कि मैं ईश्वर हूं या उसका दूत हूं या मेरी शरण से ही तुम्हारी मुक्ति होगी. बुद्ध ने स्वयं को मार्गदाता कहा, और कोई भी विशेष दर्जा नही दिया .
उन्होंने कहा..अत्ताहि अत्तनो नाथो, कोहि नाथो परोसिया.. यानी तुम अपने स्वामी, मालिक स्वयं हो ,कोई और (ईश्वर) नहीं हो सकता. तुम ही अपने दुख दूर कर सुखी होते हो और तुम ही प्रकृति के नियमों को तोड़ कर अपने दुख पैदा कर अपनी दुर्गति बनाते हो.
बुद्ध और धम्म में ईश्वर, पूजास्थल, कर्मकांडों की बजाय नैतिकता पर जोर दिया गया है. अन्य धर्मों में जो स्थान ईश्वर का है वही स्थान धम्म (प्रकृति के नियम ) में मनुष्य, उसका कल्याण और नैतिकता का है .
सबका मंगल हो……..सभी निरोगी हो
प्रस्तुति : डॉ एम एल परिहार

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