निरोग होना सबसे बड़ा लाभ है, संतोष सबसे बड़ा धन है, विश्वास सबसे बड़ा बंधु है और निर्वाण सबसे बड़ा सुख है….
गौतम बुद्ध कहते है कि आरोग्य बहुमूल्य सुख है.आरोग्य शब्द बड़ा अदभुत है,अग्रेजी के हैल्थ शब्द में वह बात नहीं. आरोग्य का अर्थ है शरीर के साथ मन के भी सारे रोगों से मुक्ति. यानी काम , क्रोध, लोभ, घृणा जैसे विकारों से भी मुक्ति. आरोग्य सबसे बड़ा लाभ है.
बुद्ध बार बार कहते है कि मैं तो चिकित्सक हूं, वैद्य हूं , तुम्हें आरोग्य देने आया हूं. मैं कोई दार्शनिक नहीं हूं ,सिद्धांत या दर्शनशास्त्र देने नहीं आया हूं.
आरोग्य शब्द विराट है जिसमें व्यक्ति शारीरिक व मानसिक सभी तरह से रोगमुक्त हो जाता है और जिसे आरोग्य मिलता है वह संतोष को भी उपलब्ध हो जाता है संतोष सबसे बड़ा धन है. संतोष एक ऐसी अवस्था है जहां किसी को दुखी कर, पीड़ा देकर ,शोषण कर धन संपदा जोड़ने की लालचा नहीं होती है.
विश्वास सबसे बड़ा बंधु और निर्वाण सबसे बड़ा सुख है. निर्वाण का अर्थ है शून्य भाव. शुद्ध यानी निर्मल. शरीर व मन दोनों से. सारे दोष व विकारों से मुक्त मन. काम ,क्रोध, अहंकार, ईर्ष्या, तृष्णा, लोभ, मोह से मुक्त मानसिक अवस्था. और इसी जीवन में प्राप्त ऐसी अवस्था को बुद्ध, निर्वाण कहते है.
कथा यह है —
एक बार कोशल नरेश प्रसन्नजीत अधिक मात्रा में भोजन कर जेत वनविहार में भगवान बुद्ध के उपदेश सुनने बैठे. आलस के मारे बार बार झपकियां आ रही थी .
बुद्ध ने पूछा, महाराज! क्या बिना आराम किए आ गए?
भगवान! यह सारा दोष भोजन का है.आलस आ जाता है.
तब शास्ता ने उन्हें कम मात्रा में भोजन करने की सलाह देते हुए कहा कि आप हमेशा जरूरत से बहुत ज्यादा खाते हो. दोष भोजन का नहीं , आपका है. मन का है जिस पर काबू नहीं है. स्वास्थ्य खराब हो रहा है, जीवन व्यर्थ जा रहा है. इसके बाद राजा ने अपनी आदत धीरे धीरे बदल दी. जिसमें उनके अंगरक्षक सुदर्शन की महत्वपूर्ण भूमिका रही.
तीन महीने बाद तथागत फिर उस नगर में उपदेश देने आए तो राजा प्रसन्नजीत भी आए. चेहरे पर ओजस्व लिए बहुत ही बदले हुए, वे बहुत प्रसन्न नजर आ रहे थे. उन्होंने भगवान का बहुत धन्यवाद किया. सुदर्शन का भी धन्यवाद किया. उसके साथ अपनी बेटी मजीरा का विवाह कर आधा राज्य दे दिया.
प्रसन्नजीत बोले, भगवान अब मैं बहुत सुखी हूं और प्रजा के सुख के लिए रत हूं.
तब तथागत बुद्ध ने यह गाथा कही थी…
आरोग्य परम लाभा, संतुट्ठी परमं धनं ।
विस्सास परमा ञाती,निब्बानं परमं सुखं।।
भवतु सब्ब मंगलं……सभी निरोगी हो
Good thought
Thank you