देशना क्या है. गौतम बुद्ध के उपदेशों को ‘देशना’ कहते हैं अर्थ अदभुत है……
भगवान बुद्ध श्रावस्ती के जेतवन में विहरते थे.उनकी देशना में निरंतर ही ध्यान के लिए आमंत्रण होता था. देशना का अर्थ होता है कहना, समझाना, राजी करना लेकिन आदेश नहीं देना.
देशना का अर्थ होता है समझाना, विवेक जाग्रति के लिए प्रेरित करना लेकिन नियंत्रित नहीं करना, दबाव नहीं देना .
देशना का अर्थ होता है आपकी बात के प्रभाव में, आपके शील की सुगंध में , आपकी दिखाई रोशनी में कोई चल पड़े. चल पड़े तो ठीक, मान ले तो ठीक, लेकिन किसी तरह का लोभ नहीं देना, किसी तरह के दंड का डर नहीं बताना. क्योंकि जो लोग धन, पुण्य, स्वर्ग आदि के लोभ के कारण ऐसे मार्ग पर चल पड़ते हैं वे चलेंगे ही नहीं. और जो दुख, पाप, रोग,नरक आदि के दंड के भय के कारण चल पड़ते हैं वह भी नहीं चलेंगे. तो बुद्ध न तो भय देते हैं, न डराते है. न ही किसी तरह का लोभ लालच.
देशना का अर्थ होता है सिर्फ निवेदन कर देना, आग्रह कर प्राकृतिक सच बता देना कि ऐसा है. बस, ऐसा होता है. वैज्ञानिक ढंग से कह देना. जैसे वैज्ञानिक कहता है कि आग जलाती है तो वह यह नहीं कहता है की आग को छुओ मत.वह कहता है आपकी इच्छा. छूना हो तो छुओ. लेकिन आग जलाती है. वह यह भी नहीं कहता कि आप आग को नहीं छुओगे तो बड़ा पुण्य होगा. इतना ही कहता है कि ना छुओगे तो जलने से बच जाओगे और छुओगे तो जल जाओगे. जलना हो तो छू लो और नहीं चलना हो तो मत छुओ.
लेकिन जब वैज्ञानिक कहता है कि आग जलाती है तो वह केवल तथ्य यानी सच की सूचना दे रहा है. वह इतना ही कहता है कि आग का गुणधर्म है कि वह जलाती है आपको करना है तो करो. नहीं करना है तो मत करो. आपके लिए कोई आदेश नहीं है.
देशना का अर्थ होता है आदेश रहित उपदेश. सिर्फ प्राकृतिक सनातन सच और तथ्य का निवेदन. कि यदि मनुष्य काम,क्रोध, मोह, लोभ, घृणा, तृष्णा के विकार पैदा करेगा तो ये परिणाम होंगे.
तो बुद्ध जीवन की अनित्यता को अनुभव कर, मन के विकारों को दूर कर निर्मल करने के लिए निरंतर ही ध्यान के लिए देशना देते थे.
भवतु सब मंगल……सबका कल्याण हो