गौतम बुद्ध कहते है जिसके भीतर दान देने की पात्रता आ जाती है वह पात्र प्रेम से भर जाता है. उसके भीतर प्रमोद होता है .प्रमोद है देने का आनंद. बांटने का सुख.
जो व्यक्ति सेवा सत्कार स्वभाव वाला है ,व्यवहार कुशल है वह आनंद से ओतप्रोत होकर दुखी व पीड़ित मानव के दुख का अंत करता है.
जब देने की कला आ जाती हैं, देने की क्षमता आ जाती है तो सुख है. देने में सुख है. जब जरूरतमंद को प्रेम,ज्ञान,धन, भोजन आदि देते हो तब एक तरह का सुख मिलता है संतोष मिलता है और प्रकृति भी उपहार में दानदाता को कई सुख लाभ देती है.
तथागत कहते है कि एक बात का ख्याल रखना कि यदि तुम किसी को कुछ दो तो अकड़ के मत देना. देना इस ढंग से कि लेने वाले को पता भी ना चले. विनम्रता से देना, झुक कर देना .हाथ तुम्हारा नीचा हो इस ढंग से देना. और लेने वाले का हाथ ऊपर रहे इस ढंग से देना. ताकि लेने वाले को ऐसा लगे कि लेकर उसने तुम पर कृपा की है, अनुग्रह किया है. फिर यह कभी नहीं कहोगे कि नेकी कर और कुएं में डाल.
तथागत बुद्ध कहते हैं कि यदि धन, ज्ञान, ध्यान, सुगंध, प्रेम ,आनंद से भरे हुए हो तो उस आनंद को बांटना, लूटाना क्योंकि देने में सुख है. दस पारमिताओं में दान पारमिता का बड़ा महत्व हैं.
बुद्ध ने इस जगत को बहुत दिया.अथाह दिया.
सबका मंगल हो
सभी निरोगी हो