बुद्ध का संदेश

क्रांति इसी पल घट सकती है, बदलाव इसी क्षण हो सकता है. बस, अपनी शक्ति पर श्रद्धा चाहिए……….गौतम बुद्ध

कौशल नरेश प्रसन्नजीत के पास बद्धरेक नाम का एक महाबलवान हाथी था.उसके बल और पराक्रम की कहानियां दूर-दूर तक फैली थी, लोग कहते थे कि युद्ध में उस जैसा कुशल हाथी कभी देखा ही नहीं था. बड़े-बड़े सम्राट उस हाथी को खरीदना चाहते थे. उसकी सिंघाड़ भी ऐसी थी कि दुश्मनों के दिल बैठ जाते थे.उसने अपने मालिक कौशल नरेश की बहुत सेवा की थी. अनेक युद्धों में नरेश को जिताया था.
फिर वह हाथी बुढा हुआ और एक दिन तालाब में नहाते समय कीचड़ में फंस गया. बुढ़ापे ने उसे इतना कमजोर कर दिया था कि वह कीचड़ से अपने को निकाल नहीं पाया. बहुत कोशिश की लेकिन नाकामयाब रहा. राजा के सेवकों ने भी बहुत कोशिश की पर सब असफल रहे. उस प्रसिद्ध हाथी की ऐसी दुर्दशा देख सभी दुखी हुए. तालाब पर बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गई. आखिर वह हाथी पूरी राजधानी का चहेता था, गांव भर में उसके प्रेमी थे. बालक और बुजुर्ग सभी उसे चाहते थे. उसकी आंखों और उसके व्यवहार से सदा ही बुद्धिमानी परिलक्षित होती थी .
राजा ने कई महावत भेजें लेकिन सभी हार गये. कोई उपाय ही नहीं दिखाई दे रहा था. तब राजा खुद गया वह भी अपने प्रिय सेवक को इस दशा में देख खुद दुखी था. राजा को आया देख तो सारी राजधानी तालाब पर इकट्ठी हो गई.
फिर एकाएक राजा को हाथी के पुराने महावत की याद आई, वह भी अब बुजुर्ग हो गया था, राज्य सेवा से निवृत्त होकर भगवान बुद्ध के उपदेशों में डूबा रहता था. उसके प्रति भी राजा के मन में बहुत सम्मान था.सोचा शायद वह बुजुर्ग महावत कुछ कर सके. काफी लगाव था हाथी और महावत का.
उस महावत को आखिर खबर दी गई, वह आया. उसने अपने पुराने योद्धा हाथी को कीचड़ में फंसे देखा .उसकी दशा देख वह हंसा. खिलखिला कर हंसा और उसने किनारे संग्राम भेरी बजवाई .युद्ध के नगाड़ों की आवाज और रणभेरी सुन अचानक बुढा हाथी जवान हो गया और कीचड़ से निकल कर किनारे पर आ गया. वह भूल ही गया अपनी वृद्धावस्था ,अपनी कमजोरी और अपनी लाचारी. उसका सोया योद्धा जाग उठा और यह चुनौती काम कर गई फिर उसे एक पल भी देर नहीं लगी .
अनेक उपाय हार गए थे लेकिन यह संग्राम भेरी, बजते नंगाड़े. उसका सोया शौर्य जाग उठा, उसका शिथिल पड़ा खून फिर दौड़ने लगा, रग रग में बिजली कौंध गई. फिर पल भर की भी देर नहीं लगी. सुबह से शाम हुई जा रही थी सब उपाय हा%E