“ब्लैक डेथ” नामक महामारी ने यूरोप को विज्ञान वादी और ताकतवर बनाया।
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आज यूरोप और अमेरिका के लोग एशियन लोगों की अपेक्षा और खासकर हिंदू और मुस्लिम लोगों की अपेक्षा अधिक विज्ञान वादी और प्रगतिशील है। वह हमसे ज्यादा ताकतवर इसलिए हैं, क्योंकि उनका आइक्यू हमारे आइक्यू से अधिक ज्यादा है ।
लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि 14वीं सदी तक यूरोपियन लोग हिंदू और मुस्लिम लोगों की अपेक्षा कई गुना अधिक धर्मांध, पाखंडी और अंधविश्वासी थे। रोमन सम्राट ने जब क्रिस्चन धर्म को अपने साम्राज्य का राजधर्म बनाया तो इटली के रोम शहर में दुनिया का सबसे बड़ा चर्च बनाया, आज हम उसे आर्टिकल सिटी के नाम से जानते है। वहां के धर्मगुरु यानी पोप, दुनिया के सारे कैथोलिक क्रिश्चन लोगों के मुख्य धर्म गुरु माने जाते हैं।
जिस तरह भारत में किसी जमाने में ब्राह्मण और क्षत्रियों के बीच में कौन श्रेष्ठ है इसका विवाद छिड़ गया था और आखिर में ब्राह्मण इस लड़ाई में जीत गए ठीक उसी तरह से रोमन साम्राज्य में भी राजा बड़ा या पोप बड़ा यह विवाद शुरू हुआ और अंत में यानी 5 वीं सदी में पोप की जीत हुई । धरती पर ईश्वर का एकमात्र प्रतिनिधि पोप है और राजा समेत सभी को उसके आदेशों का पालन करना अनिवार्य है इस बात को पूरे यूरोप ने मान लिया।
इस घटना के बाद यूरोप की पूरी सत्ता खासकर रोमन साम्राज्य की असली सत्ता कैथोलिक चर्च और धर्म गुरु के हाथों में आ गई । जगह जगह पर राजघराने थे, लेकिन सब पोप के अधीन रहकर काम करते थे । कोई संविधान नहीं था ना कोई कानून था मुख्य धर्म गुरु जो नियम बनाता था और जो आदेश देता था वही रोमन साम्राज्य का कानून था । हर गांव, कस्बे और शहर में बड़े-बड़े चर्च और मॉनेस्ट्री थी, और वहां के धर्मगुरु की नियुक्ति रोम के पोप किया करते थे। हर कस्बे और शहर में धार्मिक न्यायालय थे, (inquisition) जहां पर बैठकर छोटे-मोटे धर्मगुरु यानी पोप के प्रतिनिधि न्याय दान करते थे। धर्माधिकारी पुलिस और न्यायाधीश की दोहरी भूमिका निभाते थे। इन धर्म गुरुओं का एक मात्र कार्य यह देखना था कि, जनता मुख्य धर्मगुरुओं के हर धार्मिक विश्वास, कर्मकांड, पाखंड और अंधविश्वास का हुबहू पालन करती है या नहीं । यदि किसी ने जाने अनजाने में धर्मगुरु के आदेश का पालन नहीं किया धार्मिक पुलिस औरत आदमी को पकड़कर चर्च मे लेकर जाती थी, और वहां पर उसके अपराध के अनुरूप उसे अलग-अलग प्रकार की सजा दी जाती थी। जनता को सोचने की, अपने विचार प्रकट करने की बिल्कुल भी वैचारिक आजादी नहीं थी। लोग पूरी तरह से दहशत में जीते थे। पोप का धार्मिक साम्राज्य बहुत ही संगठित और सुनियोजित था। पोप और उसके प्रतिनिधि दावा करते थे कि, उनके पास हर बीमारी का इलाज है और जनता की हर समस्या का समाधान है। वह साक्षात ईश्वर के प्रतिनिधि है। रोज नया-नया पाखंड फैला कर वह जनता को लूटते थे। पूरा समाज घोर अंधविश्वास और अंधकार में जी रहा था। बड़े-बड़े वैज्ञानिकों और दार्शनिक लोगों को धर्मगुरुओं ने सार्वजनिक रूप से जिंदा जलाया था। इसलिए इस कालखंड को इतिहास मे अंधकार युग के नाम से पुकारते हैं।
ब्लैक डेथ का आगमन
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इसवी सन 1347 में यूरोप में अचानक कोरोना जैसी एक अजीब और नई बीमारी फैलना शुरू हुई। किसी के पास इस बीमारी की कोई दवा नहीं थी। शुरू शुरू में धर्मगुरुओं ने, अपने मुल्ला मौलवी और पंडितों की तरह होम, हवन, नमाज और पूजा पाठ जैसे अंधविश्वास से भरे हुए हथकंडे अपनाकर लोगों को झूठी तसल्ली देकर बेवकूफ बनाने की कोशिश की। लेकिन बीमारी इतनी भयावह थी कि, नियंत्रण में आने की बात तो दूर वह तूफान की तरह पूरे यूरोप में फैल गई। इसवी सन 1347 से लेकर 1351 तक इतिहासकारों के हिसाब से ऐसा कहा जाता है कि पूरे यूरोप और एशिया मे लगभग 20 करोड लोग मर गए । यानी ऐसा कहा जाता है कि, उस समय की जितनी आबादी थी, उनमें से 60% जनता इस बीमारी की हाथों मर गई।
इस बीमारी में खुद को ईश्वर का प्रतिनिधि समझने वाले लाखों धर्मगुरु भी मर गए। बड़े-बड़े चर्च और मॉनेस्ट्री उजड़ गई वीरान हो गई। स्वयं को ईश्वर का प्रतिनिधि कहने वाले धर्मगुरु या तो मर गए या कहीं अज्ञात स्थल पर भाग गए। सामान्य और भोली भाली जनता जिन धर्म गुरुओं को कभी साक्षात ईश्वर मानकर उनकी पूजा करती थी, वही धर्मगुरु रास्ते पर गिर कर तड़प तड़प कर मर रहे थे।
इस बीमारी को इतिहास में ब्लैक डेथ के नाम से जाना जाता है । इस बीमारी को बाद में दुनिया प्लेग के नाम से जानती है। 1351 के बाद बीमारी धीरे-धीरे समाप्त हुई और जो 40% लोग बच्चे थे, वह सबसे स्वस्थ और रोग प्रतिकारक शक्ति से भरपूर थे और और भयानक बीमारी और साक्षात मौत से दो दो हाथ करके वह जिंदा बच गए थे, इसीलिए वह साहसी और बुद्धिमान भी थे। धर्मगुरु की दहशत की वजह से 1347 के पहले उन्होंने अपनी बुद्धि का उपयोग करना लगभग छोड़ दिया था। मानवी रोबोट बन कर धर्मगुरुओं के रिमोट कंट्रोल के सहारे कठपुतली की जिंदगी जी रहे थे। लेकिन 1347 से लेकर 1355 के दौरान उनके ऊपर किसी भी धर्मगुरु की कोई दहशत नहीं थी, वह दहशत से मुक्त हो गए थे । महामारी के दौरान इन लोगों ने अपनी आंखों से देखा था कि खुद को ईश्वर का प्रतिनिधि मानने वाले और यह दावा करने वाले की उनके पास हर बीमारी का इलाज और हर समस्या का समाधान है, ऐसे धर्मगुरु गली कूचे में तड़प तड़प कर मर रहे थे। यह सारा नजारा देखने के बाद भोली भाली जनता को पहली बार किसी बात का एहसास हुआ कि यह सारे धर्मगुरु पाखंडी है और इनके सारे दावे झूठे हैं । आज तक बेकार में हम उनको डरते रहे ।
पोप और उनके साम्राज्य का सबसे बड़ा कुकर्म या पाप यह था कि, उन्होंने कभी प्रत्यक्ष मानवीय जीवन के प्रश्नों के बारे में कभी गंभीरता से सोचा ही नहीं था, वह तो सिर्फ अध्यात्म, पुनर्जन्म, स्वर्ग, नरक और मोक्ष के बारे में चर्चा करते थे । इन विषयों के अलावा जीवन की असली समस्याओं के बारे में या भौतिक विज्ञान के बारे में ना कभी पोप ने खुद सोचा, ना किसी को सोचने की इजाजत दी। और यदि किसी ने जीवन की असली समस्याओं के बारे में और सत्य के बारे में खोजने की और बोलने की हिम्मत दिखाई तो, तथाकथित धर्म के ठेकेदारों ने उनको नास्तिक, धर्म निंदक और देशद्रोही करार देकर मृत्युदंड की सजा दी है । कैथोलिक चर्च और उसके धर्म गुरुओं की फौज ने पूरी मानव जाति को और पूरी मानवी प्रतिभा को धर्म के बंधन में जकड़ रखा था। चाहे कवि हो, लेखक हो, पेंटर हो, गायक हो शिल्पकार हो, या दार्शनिक हो सबको धर्म और सिर्फ धर्म के बारे में अपनी सारी प्रतिभा को इस्तेमाल करने के लिए मजबूर किया था।
इस महामारी की वजह से पोप और उसके धार्मिक साम्राज्य का भी अहंकार खत्म हुआ। उनके सामने 60,% लोग तड़प तड़प कर चारों ओर मर रहे थे, लेकिन उनका ईश्वर और उनका धर्म, किसी को भी बचाने में असमर्थ था। उनके सारे दावे, इस बीमारी ने झूठे साबित कर दिए। उन्होंने फैलाया हुआ सारा पाखंड और अंधविश्वास बिखर गया। इस महामारी ने जनमानस को पूरी तरह से बदल दिया।यूरोप के इतिहास में पहली बार सैकड़ों लोगों ने सर्वशक्तिमान ईश्वर के बारे में संदेह लेना शुरू किया। आत्मा, परमात्मा, ईश्वर, पुनर्जन्म और मुक्ति ऐसी निराधार बातों के बारे में सोचने की अपेक्षा अपने इस भौतिक जीवन के बारे में, इस जीवन की ज्वलंत समस्याओं के बारे में सोचना ज्यादा जरूरी है, इस बात का एहसास पहली बार लोगों को हुआ।
पोप के चक्कर में आकर रोमन सम्राट कमजोर हो चुका था। उसकी ऐसी धारणा थी कि ईश्वर और धर्म मेरे साथ है, मुझे कोई हरा नहीं सकता, इसलिए उसने कभी भी अपनी सामरिक ताकत को बढ़ाने की जरूरत नहीं समझी। इसका नतीजा यह हुआ की नया नया स्थापित किया हुआ मुस्लिमों का ऑटोमन साम्राज्य अधिक ताकतवर बन गया और सन 1453 में ऑटोमन साम्राज्य के सैनिकों ने पूर्वी रोमन साम्राज्य की राजधानी कांस्टेंटिनॉपल पर आक्रमण करके उसे जीत लिया। दुनिया का सबसे पुराना और सबसे ताकतवर क्रिश्चियन साम्राज्य नष्ट हो गया। रोमन साम्राज्य की पराजय के बाद, रोमन साम्राज्य में फैले हुए सभी बुद्धिमान लोग अपनी जान बचाने के लिए इटली के फ्लोरेंस नाम के गांव में जाकर बस गए।
पुनर्जागरण काल की शुरुआत।
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इटली का फ्लोरेंस शहर बड़ा ही सुंदर है, वहां की जलवायु बड़ी स्वास्थ्यवर्धक और उत्साहवर्धक है । रोमन साम्राज्य के पराजय के बाद रोमन साम्राज्य में फैले हुए सारे बुद्धिजीवी इटली के फ्लोरेंस शहर में आकर बस गए। और रोमन साम्राज्य की हार पर फ्लोरेंस के हर चौक पर खुलेआम चर्चा होने लगी। पोप और धर्मगुरुओं की लोगों को डराने की ताकत खत्म हो चुकी थी। लोग भी बगावती मूड में आ गए थे। लोगों को धीरे-धीरे इस बात का एहसास हो गया था कि लड़ाई में जीत सत्य की नहीं होती, जीत सिर्फ जो ताकतवर है उसकी होती है। और ताकतवर होने के लिए अध्यात्म का चक्कर छोड़ कर भौतिक समस्याओं के बारे में सोचना जरूरी है।
पुनर्जन्म और स्वर्ग ऐसी बातों पर अपनी प्रतिभा को बर्बाद करने की अपेक्षा यही धरती पर अपना जीवन अधिक बेहतर और सुखी कैसे किया जाए ? इस बारे में सोचना सबसे बड़ी जरूरत है । क्योंकि सबसे बड़ी कैथोलिक चर्च इटली के रोम शहर में थी, और इटली के धर्मगुरुओं ने तबसे इटली के लोगों पर सबसे ज्यादा जुल्म किया था, इसीलिए इटली के फ्लोरेंस नाम के शहर से पुनर्जागरण युग की शुरुआत हुई। लोगों ने पोप और धर्म की दहशत को ठुकरा दिया और जीवन के हर क्षेत्र में विज्ञान, तंत्रज्ञान, गणित, खगोल शास्त्र, मेडिसिन, संगीत, शिल्प कला, काव्य और साहित्य के क्षेत्र में नए सिरे से और नए ढंग से सोचना शुरू किया।
पुनर्जागरण यानी ‘एज आफ इनलाइटनमेंट’ धीरे धीरे पूरे यूरोप में फैल गया और इसी की वजह से धीरे-धीरे यूरोप टेक्नोलॉजिकल फील्ड में ताकतवर बन गया । उसके बाद उन्होंने पूरी दुनिया काबीज की। आज यूरोप और अमेरिका यदि दुनिया में सबसे बड़ी ताकत बन के उभर कर आए हैं इस क्रांतिकारी परिवर्तन के पीछे अन्य कारणों के साथ ब्लैक डेथ महामारी का सबसे बड़ा हाथ है।
?♂अब हमारा भी अगला कदम तर्क और विज्ञान की ओर…?♂