बुद्ध के सारे उपदेश एक छोटे से शब्द में समाहित है .मज्झिम निकाय…जिसका अर्थ होता है मध्य मार्ग (The middle way) यानी बीच का रास्ता .
शब्द तो बहुत सीधे सरल है लेकिन इनमें बहुत विराट भाव समाहित है. यही वह क्रांति हैं जो बुद्ध इस जगत में लाए.
मध्य मार्ग आखिर क्या है?
मनुष्य का मन अतियों में डोलता है कोई धन के पीछे पागल है तो कोई पद के पीछे. एक दिन ऐसा आता है जब धन व पद की दौड़ से थक जाता है मन भर जाता है तो इसके विपरीत चलने लगता है फिर कहता है धन को छूना भी पाप. पहले स्त्री के लिए दीवाने थे अब स्त्री से डर कर भाग रहे हैं हिमालय की ओर .कोई नंगे पैर महीनों पदयात्रा करता है तो कोई प्रभू मिलन के लिए उल्टा लटक कर तपस्या. कोई व्रत उपवास कर शरीर को कष्ट देते हैं या रात दिन पांच पकवान ठूंस ठूंस कर खाते है .पहले संसार को खूब भोगा फिर एकदम सारा कुछ छोड़ कर त्यागी हो गए.
लेकिन बुद्ध कहते हैं मध्य में रहो. अति पर मत जाओ. नहीं तो तुम घड़ी के पेंडुलम की तरह एक कोने से दूसरे कोने पर भटकते रहोगे. मध्य में मार्ग है. न भोगी बनो ,न त्यागी. न संसार, न मोक्ष. न धन के दीवाने रहो और न धन छोड़ने की दीवानगी. दोनों के बीच रुक जाओ. न आलसी बनो, न हाड़तोड़ मेहनत करो. मध्य में रहो. सम्यक जीवन जीओ. जीवन की ऊर्जा हमेशा संतुलित हो. साक्षी भाव को जगाओ. जागरूक बनकर देखो. जो हो रहा है तुम बीच में रहो .इस बीच में रहने की कला का नाम ही ‘मध्य मार्ग’ है और जो व्यक्ति बीच में रह जाता है मुक्त हो जाता है.
पहले स्त्री व पुरुष एक दूसरे को भोगने का रस, फिर भोगते भोगते विरक्ति पैदा हो जाना और वैराग्य की बातें उठना .छोड़ दो सब भागो जंगल की ओर. पहले बेईमानी से कमाया खूब धन जोड़ा , फिर धन छोड़कर भाग जाना क्योंकि धन प्रभु मिलन में बाधक है .पहले धन के पीछे पागल ,फिर धन कोरा ठीकरा नजर आता है.
इसलिए बुद्ध कहते हैं अति से बचो. फिर अति चाहे भोग और त्याग की हो, चाहे जीवन और मृत्यु की हो. चाहे संसार और मोक्ष की हो .अति तो अति ही है.
फिर मुक्त कौन है? मुक्त वह है जो ठीक मध्य में खड़ा हो गया . जिसे न तो अब धन की आकांक्षा है और न छोड़ने की आकांक्षा है. जिसे न संसार से लगाव है ,न संसार से वैराग्य. इस संसार में न को किसी चीज को कहना कि इसके बिना जी नहीं सकूंगा और न यह कहना कि इसके साथ जी नहीं सकूंगा.
इस प्रकार धम्म जगत में बुद्ध ने पहली बार मनोविज्ञान का एक मौलिक आधार स्थापित किया. मन का स्वरूप समझाया कि मन अतियों में डोलता है. मन यानी अति और अति से जो मुक्त है वही मुक्त है क्योंकि वही मन से मुक्त है.
वीणा के तार को इतना भी मत खींचो कि टूट जाए और इतना ढीला भी मत रखो कि सुर भी नहीं निकले. यही मध्य मार्ग है……
……… भवतु सब्ब मंगलं…….