
?विपश्यना : वर्तमान में जीने का धर्म ?
इस समय जो जैसा अनुभूत हो रहा है,वही हमारे काम का है।
न भूतकाल जो बीत चूका है और न भविष्य जो की अभी आया नहीं।
अतः कल्पनाओ और कामनाओं से बचे।
अपनी प्रज्ञा जगाकर इस क्षण के यथार्त का दर्शन करते रहें।
? भगवान् बुद्ध ने कहा है की जो अच्छे साधक है वो अतीत को याद करके चिंतित नहीं होते व अनागत की कल्पना में नहीं लगे रहते बल्कि इस क्षण की सचाई में ही जीते है, इससे उनके चेहरे खिले रहते है.
इस प्रकार क्षण प्रतिक्षण वर्तमान पर ही मन लगाये रखे तो प्रसन्नचित से आगे बढ़ते जाते है.
?गुरूजी इस जीवन में हमारे साथ जो भी हो रहा है, क्या वह हमारे पूर्व कर्मो का ही परिणाम है?
उत्तर– यह सच है तो भी हम इसके कारण अपने आप को निष्क्रिय न बना लें।यह सोचकर की हमारे पूर्व कर्म के अनुसार जो होने वाला है सो तो होगा ही, हम उसमे क्या कर सकते हैं? यह धर्म के, प्रकर्ति के नियमो के बिलकुल विरुद्ध चिंतन होगा।
यह सच है कि पुराने कर्म हमारे इस जीवन की धारा को सुखद या दुखद मोड़ देते हैं, परंतु हमारा वर्तमान कर्म बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि वर्तमान के हम मालिक हैं।और यह मिलकियत अगर हमने हासिल कर ली तो हम इस धारा को अगर दुखद है तो उसे मोड़ने में सफल हो सकते हैं।
?पहले तो उसका सामना करना सीखेंगे, समता स्थापित करेंगे, फिर देखेंगे की मोड़ने के काम में लग गए।दुःख सुख में बदलने लगा।लेकिन अगर यह मानकर बैठ गए की दुःख तो आने ही वाला है क्योंकि हमारे पुराने कर्म ही ऐसे हैं तो चिंतन गलत हो जाएगा।
और यदि जीवनधारा सुखमय है तो भी हम सत्कर्मो में लगे रहेंगे तो यह सुखद धारा और अधिक सुखद बनेगी।
?तो हर हालत में वर्तमान कुशल कर्म को अधिक से अधिक महत्त्व देने में ही समझदारी है।
? वर्तमान पर विश्वास करो।
भविष्य अपने आप उसका गुलाम है वह ठीक होता चला जायेगा।
जिसने अपना वर्तमान सुधार लिया, उसका भविष्य अपने आप सुधरता चला जाएगा।
भविष्य वर्तमान की ही संतान है।