Angulimal-and-buddh-डाकू-अंगुलिमाल-की-पब्बज्जा
डाकू अंगुलिमाल की पब्बज्जा
कोशल राज पसेनदि के राज्य में अंगुलिमाल नाम का एक डाकू रहता था वह है कठोर स्वभाव का था जिसके हाथ सदा रक्त से रंगे रहते थे, जिसका काम ही था आदमियों को घायल करना और उनकी हत्या करना । उसके मन में किसी भी प्राणी के लिए कोई दया नही थी। उसके कारण जो पहले गांव थे । वे अब गांव नहीं रहे ।जो पहले नगर में रहते थे अब नगर नहीं रहे ; जो पहले कस्बे में थे , वे अब कस्बे नहीं रहे ।
जिस किसी आदमी की भी वह हत्या करता था , वह उसकी एक अंगुली काट कर अपना माला में पिरो लेता था । इसीलिए उसका नाम अंगुलिमाल पड़ गया था । एक समय जब बुध्द सावत्थि के जेतवन में विहार कर रहे थे , उन्होंने डाकू अंगुलिमाल द्वारा किए गए विध्वंस की कहानी सनी । तथागत बुद्ध ने उस डाकू अंगुलिमाल को एक धाम्मिक पुरुष में बदल देने का निश्चय किया । इसलिए एक दिन भोजन ग्रहण करने के बाद वह अपना आसन छोड़कर , पात्र – चीवर लेकर , अंगुलिमाल की खोज में निकल पड़े । उन्हें उधर जाते देख , ग्वाले , बकरियां चराने वाले , हल जोतने वाले और दूसरे रास्ता चलने बाले सभी राहगीर चिल्ला उठे , ” हे तथागत बुद्ध ! उस ओर मत जाइए । यह मार्ग आपको अंगुलिमाल के पास ले जाएगा ।“ अरे , जब दस , बीस , तीस और चालीस आदमी भी मिलकर उस मार्ग पर यात्रा करते हैं । तो भी वे उस डाकू के हाथों में पड़ जाते हैं । लेकिन तथागत बुद्ध बिनाना एक भी शब्द बोले अपने पथ पर आगे बढ़ते ही गए । दूसरी और तीसरी बार भी उन निकट के और अन्य लोगों ने तथागत को सावधान किया । किंतु फिर भी तथागत चुपचाप अपने पथ पर आगे बढ़ते ही गए । कुछ दूर से डाकू अंगुलिमाल ने तथागत बुद्ध को अपनी ओर आते देखा । उसे बहुत आश्चर्य हआ । जहां दस से पचास तक की संख्या में यात्रियों का समूह उस मार्ग पर आने का साहस नहीं कर सकता था , यह ‘समण ‘ अकेला ही बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा था ।
डाकू अंगुलिमाल ने ‘ समण ‘ की हत्या करने का विचार किया । उसने अपनी ढाल – तलवार ली , तीर और तूणीर संभाले, तथागत के पीछे चल दिया । तथागत अपनी स्वाभाविक गति से आगे बढ़ते चले जा रहे थे , किंतु डाकू अंगुलिमाल अपने पूरे प्रयास के बाद भी उनको पकड़ नहीं पा रहा था । अंगुलिमाल डाकू ने सोचा , ” यह विचित्र और आश्चर्यजनक बात है । अभी तक तो ऐसा था कि पूरी गति से भागते हुए एक हाथी को , एक घोड़े को , एक गाड़ी को अथवा एक हिरण को आगे पहुंचकर में पकड़ सकता था , और अब में पूरे प्रयास के बाद भी व गति से जाते हुए इन समण को भी नहीं पकड़ पा रहा है । ” बस वह रुक गया और चिल्लाकर तथागत बुद्ध को भी रुकने के लिए कहा । जब दोनों मिले , तो तथागत ने कहा , ” अंगुलिमाल मैं तो तेरे लिए रुक गया अब तू भी अकुशल कर्म करने से रुक जाएगा ? इसीलिए यहाँ तक आया तू भी सत्पथ का अनुगामी बन जाए । तेरे अंदर अच्छाई अभी मरी नहीं है । ” इसे केवल एक अवसर देगा तो यह तेरा स्वरूप ही बदल डालेगी ।
अंगुलिमाल तथागत बुद्ध के श्रेष्ठ वचन के वशीभूत हो गया और बोला
, ” आखिर में तथागत ने मुझे जीत ही लिया । “” और अब जब आपकी निर्मल वाणी मुझे हमेशा के लिए अकुशल कर्म से विरत होने को कह रही है , तो मैं इस दिशा में परीक्षण करने के लिए तैयार हूँ , ” अंगुलिमाल ने कहा। उसने अपने गले में पड़ी हुई अंगुलियों की माला को उतार कर एक गहरे गड्ढे में फेंक दिया। और तथागत के चरणों पर गिर कर भक्खुसंघ में प्रविष्ट होने जाने की याचना की।
मनुष्यो के शास्ता तथागत बोले, “भिक्खु आ मेरा अनुसरण कर । ” और अंगुलिमाल उसी भिक्खु बन गया । डाकू अंगुलिमाल को अपना अनुचर बनाकर तथागत सावत्थि के जेतवन की ओर चल पड़े। ठीक उसी समय राजा पसेनदि के महल के आंगन में एक विशाल भीड़ चिल्ला – चिल्ला कर राजा से कह रही थी “तुमने जिस राज्य को जीता उसी राज्य में तो अंगुलिमाल डाकू है । वह विनाश कर रहा है। निर्दोष लोगों को जान से मार रहा है और उन्हें घायल कर रहा है। घायल कर उन मारे गए लोगों की अंगुलियों को काट कर अपनी माला बनाकर उसे गले में पहन कर अपनी शान समझता है। महाराज उसका दमन करें पसेनदि ने उसका मूलोच्छेद कर डालने का आश्वासन दिया। लेकिन वह कुछ भी कर सकने में असमर्थ रहे।
विनाश कर र में एक विश त : काल राजा पसेनदि तथागत के दर्शनार्थ जेतवन विहार गए । एक दिन प्रातः काल राजा पसेनदि तथागत के दर्शनार्थ जेतवन विहार गए। तथागत ने पूछा,”राजन ! क्या बात है ? क्या मगधराज बिम्बिसार के साथ कुछ विवाद है , अथवा वेसाली के लिच्छवियों के साथ या किसी अन्य आक्रामक शक्ति के साथ कोई समस्या है?” “हे तथागत ! इस प्रकार की कोई समस्या नहीं है । किंतु मेरे राज्य में अंगुलिमाल नाम का एक डाकू रहता है , जो मेरे राज्य क्षेत्रों में उपद्रव मचा रहा है और मेरी प्रजा को परेशान कर रहा है । मैं उसका दमन करना चाहता हूं , किंतु मैं ऐसा करने में असमर्थ हो रहा हूं । ” ” राजन । यदि आप अब देखें कि अंगुलिमाल के दाढ़ी – मूछ मुंडे हैं , उसने काषाय वस्त्र धारण कर रखे हैं , वह एक भिक्खु है , वह न तो किसी को मारता है , न चोरी करता है , न झूठ बोलता है . एकाहारी है , और सद्गुणों का जीवन व्यतीत करता है , तो आप उससे कैसा व्यवहार करेंगे ?”
” हे तथागत ! या तो मैं उसे अभिवादन करूंगा , या उसके आगमन पर खड़ा हो जाऊंगा , या उसे बैठने का निमंत्रण दूंगा , या उससे चीवर तथा भिक्खु के लिए आवश्यक अन्य वस्तुएं स्वीकार करने के लिए निवेदन करूंगा , अथवा मैं उसकी रक्षा , सुरक्षा की व्यवस्था करूंगा और उसके हितों की देखभाल करूंगा , जिसका कि वह अधिकारी है । लेकिन इतने दुष्ट और इतने पतित पर ऐसे सद्गुण की छाया कैसे पड़ सकती है ? ” उस समय वह आदरयुक्त भिक्खु अंगुलिमाल बुद्ध के अति निकट बैठे थे । बुद्ध ने अपना दाहिना हाथ बढ़ाया और उसकी ओर संकेत करके कहा , ” राजन ! यही है अंगुलिमाल । ” ऐसे में राजा चौंक कर गूँगे जैसा हो गया और उसके रोंगटे खड़े हो गए । यह देख तथागत कहा , ” राजन ! भय मत खाइए , भयभीत न होइए : यहां भय का कोई कारण नहीं है । जब राजा का भय और घबराहट दूर हुई तो यह अंगुलिमाल के पास गये और बोले , ” मान्यवर ! क्या आप सचमुच् अंगुलिमाल हैं ” हां राजन ! ” ” आपके पिता और माता का क्या नाम था ? ” राजन ! मेरे पिता का नाम गार्ग्य आर मेरी माता का नाम मैत्रायणी था । ” गार्ग्य – मैत्रायणी पुत्र ! प्रसन्न हो । में अब से आप की सब आवश्यकताएं पूरी करूंगा ।”
उस समय अंगुलिमाल ने संकल्प ले लिया था कि वह अरण्य में ही वास करेगा , भिक्खा पर ही निर्वाह करेगा , और तीन से अधिक चीवरों का व्यवहार नहीं करेगा और वे तीन चीवर भी पांसु – कुलिक होंगे , अर्थात कुडे – कचरे के ढेर पर पड़े मिले हुए कपड़े के बने होंगे । उसने यह कहकर कि उसके तीन चीवर उसके पास हैं , राजा का निमंत्रण – अस्वीकार कर दिया । तब राजा बुद्ध के पास गये और अभिवादन करने के बाद एक ओर बैठ गये , और बोले , ” तथागत ! यह आश्चर्य है , यह अद्भुत है ! आप जंगली को पालतू बना लेते हैं । अदांत ( अशिक्षित ) को दांत ( शिक्षित ) कर देते हैं । अशांत को शांत कर देते हैं । यह वही हैं जिन्हें मैं लाठी – तलवार से वश में नहीं कर सका । लेकिन ! तथागत ने उसे बिना किसी लाठी – तलवार के वश में कर लिया है । तथागत ! अब मैं आपसे विदा मांगता हूं क्योंकि मुझे बहुत से कार्य करने हैं । ” “आप जिसमें सुविधा समझें करें ।” तब राजा पसेनदि अपने स्थान से उठा और अत्यंत विनम्रभाव से तथागत का अभिवादन करके एक दिन जब पात्र चीवर धारण किए अंगुलिमाल सावत्थि में भिक्खाटन कर रहे थे , एक मनुष्य न उसके सिर पर ढेला फेंक कर मारा , दूसरे ने एक डंडा फेंक कर मारा और तीसरे ने एक ठीकरा फेंक कर मारा । परिणामस्वरूप उनके सिर से रक्त की धारा बहने लगी भिक्खा – पात्र टूट गया । वस्त्र फट गए । ऐसी ही अवस्था में अंगुलिमाल बुद्ध के पास पहुंचा । वह समीप आया तो बुद्ध ने कहा , ” अंगुलिमाल ! यह सब सहन कर । अंगुलिमाल ! यह सब सहन कर । ” इस प्रकार बुद्ध की शिक्षाओं को धारण करने से अंगुलिमाल डाकू एक धम्मचारी भिक्षु बन गए । मुक्ति – सुख का आनंद लेते हुए उन्होंने कहा , ” जो पहले प्रमादी रहकर बाद में अप्रमादी हो जाता है , कुशल कर्मों से अपने भूतकाल को ढक लेता है , जो तरुण अवस्था में बुद्ध शासन में आ जाता है , वह बादलों से मुक्त चंद्रमा की तरह इस संसार को प्रकाशित करता है । मेरे शत्रु भी इस शिक्षा को सुनें , इस मत को माने और पञा ( प्रज्ञा ) के पथ को धारण करें । मेरे शत्रु भी समय रहते मेत्ता ( मैत्री ) , विनम्रता और क्षमा – शीलता की शिक्षा ग्रहण करे । वे उसी के अनुसार आचरण करें । “अंगुलिमाल के रूप में में डाकू के तौर पर रहता था , पतनोन्मुख था , में धारा में नीच ओर बहा जा रहा था । तथागत ने मुझे भूमि पर लाकर खड़ा कर दिया । अंगुलिमाल के रूप में मैं खून से से रंगे हाथों वाला था; अब में संपूर्ण रूप से मुक्त हूँ ।
राजेन्द्र के. निब्बाण
9467789014
Nice information
Thank you