बुद्ध ने अपने लिए अथवा अपने धम्म के लिए किसी प्रकार के का दावा नहीं किया । उनका धम्म मनुष्य के लिए एक दारा खोजा गया धम्म था । यह ईश्वरीय नहीं था ।

Buddh Dhamm Margdata बुद्ध मैं मार्गदाता हूं, मोक्षदाता नहीं, 

Buddh His Dhamm Margdata बुद्ध मैं मार्गदाता हूं,उनका धम्म का मार्ग नमो बुद्धाय

भगवान बुद्ध

 

 

बुद्ध ने मुक्ति का आश्वासन नहीं दिया ।उन्होंने कहा मैं मार्गदाता हूं , मोक्षदाता नहीं                                                                            Buddh बुद्ध मैं मार्गदाता हूं, मोक्षदाता नहीं.                                                                                                                                  बहुत से धर्म ” इल्हामी धर्म ” माने जाते हैं , किंतु बुद्ध का धर्म ‘ इल्हामी धर्म ‘ नहीं है ।

कोई धर्म इल्हामी धर्म इसलिए कहलाता
है कि वह ईश्वर का ‘ संदेश ‘ है , जो उसके द्वारा निर्मित प्राणियों के नाम होता है कि वे अपने रचयिता ( ईश्वर ) की पूजा करें और अपनी आत्माओं की रक्षा करें । प्रायः यह संदेश किसी किसी चुने हुए व्यक्ति के द्वारा भेजा जाता है , जो खुदा या ईश्वर का दूत कहलाता है, जिसे वह संदेश प्रकट किया जाता है , और फिर वह उस संदेश को लोगों के सामने प्रकट करता है । तब वह धर्म कहलाता है । यह खुदा या ईश्वर के दूत का कर्तव्य है कि जो उस धर्म में विश्वास रखते हैं ,उनके लिए वह निजात या मुक्ति निश्चित करे।

उस धर्म में विश्वास रखने वाले की मुक्ति का अर्थ है , उनकी आत्माओं की रक्षा करना तथा उन्हें नरक में जाने से बचाना , बशर्ते कि वे ईश्वर की आज्ञा का पालन करें और पैगंबर को उसका दूत मानें । बुध्द ने कभी भी अपने को ‘ खुदा या ईश्वर का दूत ‘ होने का दावा नहीं किया । यदि कभी न किसी ने ऐसा समझा , तो बुद्ध ने उसका खंडन ही किया ।

Buddh Dhamm Margdata बुद्ध मैं मार्गदाता हूं, मोक्षदाता नहीं, उनका धम्म का मार्ग..

इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि बुद्ध का धम्म एक खोज ( Discovery ) है । इसलिए इसे किसी भी ‘ इल्हामी धर्म ‘ से सर्वथा भिन्न समझा जाना चाहिए बुद्ध का धम्म इन अर्थों में एक आविष्कार या खोज है , क्योंकि यह पृथ्वी पर मानवीय – जीवन की स्थिति के गंभीर अध्ययन का परिणाम है और जिन स्वाभाविक – प्रवृत्तियों ( Instincts ) को लेकर आदमी ने जन्म ग्रहण किया है उन्हें पूरी तरह समझ लेने का परिणाम है , और साथ ही उन प्रवृत्तियों को भी जिन्हें आदमी ने इतिहास और परंपराओं के परिणामस्वरूप जन्म दिया है , जो मानव के हित में नहीं है ।

सभी खुदा या ईश्वर के दूतों ने मुक्ति का आश्वासन दिया है । बुद्ध ही मात्र एक ऐसे महापुरुष हुए हैं जिन्होंने इस प्रकार का कोई आश्वासन नहीं दिया । उन्होंने ‘ मोक्ष – दाता ‘ और ‘ मार्ग – दाता ‘ के अर्थ में पूर्ण अंतर रखा है । अर्थात , एक तो ‘ मोक्ष ‘ देने वाला है , दूसरा केवल उसका ‘ मार्ग ‘ बता देने वाला । बुद्ध केवल मार्ग – दाता थे ।

अपनी मुक्ति के लिए हर किसी को स्वयं प्रयास करना होता है । उन्होंने इस एक सुत्त में मोगल्लान गणक को यह बात सर्वथा स्पष्ट कर दी थी । एक बार बुद्ध सावत्थि में मिगारमाता के विहार पूर्व आराम में ठहरे हुए थे । तब मोगल्लान गणक तथागत के पास आया और अभिवादन करके कुशल क्षेम पूछने के पश्चात एक ओर बैठ गया ।

इस प्रकार बैठे हुए मोगल्लान गणक ने तथागत से कहा- हे तथागत । जिस प्रकार आदमी किसी बहुमंजिले प्रासाद की प्रगति को देखते के अनुसार एक क्रम के अनुसार एक के बाद एक सीढ़ी से होता हुआ ऊपर की अंतिम सीढ़ी तक है इसी प्रकार हम ब्राह्मणों की शिक्षा भी क्रमिक है , क्रमशः है अर्थात हमारे वेदों का पाठ्यक्रम भी ऐसा ही क्रमिक है । हे तथागत ! जैसे धनुर्विद्या में होता है , उसी प्रकार हम ब्राहाणों में भी प्रशिक्षण , प्रगति और एक के बाद एक सीढ़ी होते हुए ऊपर पहुंचना होता है , वैसे ही जैसे गणना में होता है।

” जब हम विद्यार्थी को लेते हैं तो हम उसे इस प्रकार गणना सिखाते हैं , एक- एक, दूनी दो, तिया तीन , चौके चार और इसी प्रकार सौ तक। ” अब ” हे तथागत क्या आपके लिए भी यह संभव है कि आप ऐसे ही शिक्षण का परिचय दे सके जो क्रमिक हो, जिसमें आपके धम्म में अनुयायी उसी प्रकार शिक्षा ग्रहण करते हों ? ”

Buddh Dhamm Margdata बुद्ध मैं मार्गदाता हूं, मोक्षदाता नहीं, उनका धम्म का मार्ग..

“ मोगल्लान गणका ऐसा ही है । मोगल्लान गणका एक चतुर अश्व – शिक्षक ही लो। वह एक अच्छी नस्ल के घोड़े को प्रशिक्षण में लेता है । सबसे पहले वह उस के मंह लगाकर उसे साधता है । फिर धीरे – धीरे आगे का पाठ्यक्रम सिखाता है । ” इसी प्रकार मोगल्लान गणक ! ऐसे ही तथागत उस मनुष्य को साथ लेते हैं प्रशिक्षण देना होता है और उसे प्रथम शिक्षा इस प्रकार देते हैं , ‘ आओ आ शीलवान बनो ।

पात्तिमोक्ख के नियमों का पालन करो । ‘ ” सदाचरण को ठीक प्रकार से जान लो , छोटे – छोटे दोषों के संकट को भी देखते द्वार ग्रहण करो और विनय में शिष्य बनो ।” ” जब वह इस प्रथम शिक्षा में प्रवीण हो जाता है, तो तथागत उसे दूसरी शिक्षा इस देते है, ‘भिक्खु ! आओ आंख से किसी रूप को देखकर उसके सामान्य स्वरूप अथवा उसको ब्यौरे के प्रति आसक्त न होओ । ” तृष्णा से उत्पन्न होने वाली उस उदासी पर संयम रखो जो असंयत रहने से किसी रूप को देखकर उत्पन्न होती है , ये अकुशल अवस्थाएं बाढ़ की तरह आदमी को समेट लेती हैं ।

चक्षु – इंद्रिय पर संयम रखो , रूप को देखकर पैदा होने वाली भावना पर नियंत्रणा रखो । ” “ और इसी प्रकार अपनी दूसरी इंद्रियों के विषय में भी सावधान रहो । जब तुम कान से । कोई शब्द सुनो , या नाक से कोई गंध सूंघो , जिहा से कोई चीज चखो , या शरीर से किसी । का स्पर्श करो और जब तुम्हारे मन में तत्सम्बंधी संज्ञा पैदा हो तो उस वस्तु के सामान्य स्वरूप अथवा उसके ब्यौरे के प्रति आसक्त मत होओ । ” ” जैसे ही वह उसमें पारंगत हो जाता है , तो तथागत उसे अगली शिक्षा इस प्रकार देते हैं ।

‘ भिक्खु आओ , भोजन के विषय में मात्रज्ञ होओ . सावधानीपूर्वक भोजन करो , न मजे का लिए , न मद के लिए , न मनोरंजन के लिए न शरीर को सजाने के लिए , बल्कि जब तर शरीर है तब तक इसे स्थिर बनाए रखने के लिए , पीड़ा से बचे रहने के लिए तथा जीवन व्यतीत करने के लिए ही भोजन ग्रहण करो । भोजन ग्रहण करते समय मन विचार रहना चाहिए कि मैं पहल की वेदना को नियंत्रित कर रहा हूं , नई वेदना को उत्पन्न नहीं होने दूंगा जिससे मुझे अनुरक्षण और प्राप्त हो।” मोगल्तान गणका!जब वह भोजन के विषय मे संयत हो जाता है,तब तथागत उसे अगली शिक्षा इस प्रकार पढ़ाते हैं,’ भिक्खु! आओ, जागरुकता ( सति ) का अभ्यास करो ।

Buddh His Dhamm Margdata बुद्ध मैं मार्गदाता हूं,उनका धम्म का मार्ग नमो बुद्धाय  

दिन के समय, चलते हुए या बैठे हुए अपने चित्त को उन चित्त – मलों से परिशुद्ध करो जो बाधक हो सकते है। रात को पहले पहर में भी चलते – फिरते या बेठे हए ऐसा ही करो । रात के दूसरे पहर में सिंह – शैय्या से दाहिनी करवट लेटकर एक पैर को दूसरे पांव पर रखे हुए, जागरूकता तथा सम्यक जानकारी युक्त , अप्रमादरत रहकर अपने विचारों को उद्योगरत करो। तब रात के तीसरे पहर में जागकर चलते हुए या बैठे हुए अपने चित्त को चित्त – मलों तथा बाधाओं से परिशुद्ध करो । ” और मोगल्लान गणक ! जब वह जागरूकता का अभ्यासी हो जाता है , तो तथागत उसे शिक्षा इस प्रकार देते हैं , ‘ भिक्खु । आओ , जागरूकता और स्व – संयम से युक्त हो यो ।

आगे चलते हुए या पीछे हटते हुए अपने आपको संयत रखो । आगे देखते हुए , पीछे देखते हुए, झुकते हए , आराम करते हुए , चीवर धारण करते हुए , पात्र – चीवर ले जाते हुए, खाते हुए , चबाते हुए , चखते हुए , शौच जाते हुए , चलते हुए , खड़े होते हुए , बैठते हुए , लेटते हुए , सोते हुए , जागते हुए , बोलते हुए या मौन रहते हुए संयत बने रहो । ” मोगल्लान गणक !

जब वह स्व – संयमी हो जाता है तब तथागत उसे अगली शिक्षा देते हैं , भिक्खु! आओ, किसी एकांत स्थान को खोजो , जंगल हो या किसी वृक्ष की छाया हो . कोई पर्वत हो , पर्वत की गुफा हो , श्मशान भूमि हो , निर्जन वन हो , खुला अकाश हो , चाहे कोई भूसे का ढेर हो ।’ और वह वैसा करता है ।

जब वह भोजन कर लेता है तो वह पालथी लगाकर बैठता है और शरीर को सीधा रखकर चारों – ध्यानों का अभ्यास करता है । “ मोगल्लान गणक ! सभी भिक्खुओं के लिए जो अभी शिष्य ही हैं , जो अभी तक मन को साधने में दक्ष नहीं हुए हैं , जो अभी इसके लिए प्रयत्नशील हैं , उनके लिए मेरा यही प्रशिक्षण – क्रम।

Buddh Dhamm बुद्ध मैं मार्गदाता हूं,उनका धम्म का मार्ग

” लेकिन जो अर्हत हैं , जो अपने आसवों का नाश कर चुके हैं , जो अपने जीवन का उद्देश्य पूरा कर चुके हैं , जो कृत्कृत्य हैं , जो मन से भार उतार चुके हैं , जो मुक्ति – प्राप्त हैं , जिन्होंने बंधनों का मूलोच्छेद कर दिया है , जो आंतरिक दृष्टि द्वारा मुक्त हैं ऐसे व्यक्तियों के वर्तमान जीवन को सुखी बनाने के लिए और स्व – संयम के लिए ये बातें सहायक हैं । ‘

” जब यह कहा जा चुका , तब मोगल्लान गणक ने तथागत से कहा-” हे तथागत ! मुझे यह तो बताएं कि क्या आप के सभी शिष्य उस श्रेष्ठ निब्बाण को प्राप्त करते हैं , अथवा कुछ प्राप्त करने में असफल भी रह जाते हैं ? ” मोगल्लान गणक ! मेरे द्वारा इस क्रम से शिक्षित मेरे कुछ सावक निब्बाण प्राप्त कर लेते हैं , अथवा कुछ प्राप्त करने में असफल भी रह जाते है।” ” हे तथागत ! इसका क्या कारण है ? तथागत ! इसका क्या हेतु है ? यहां निब्बाण है ।

Buddh Dhamm Margdata बुद्ध मैं मार्गदाता हूं, मोक्षदाता नहीं,

यहां निब्बाण की ओर जाने वाला मार्ग है । यहां तथागत जैसे योग्य पथ – प्रदर्शक हैं । तो फिर क्या कारण है कि इस क्रम से शिक्षा प्राप्त कुछ सावक निब्बाण प्राप्त करते हैं , कुछ नहीं करते ? ” मोगल्लान गणक ! मैं तुम्हारे इस प्रश्न का उत्तर दूंगा । लेकिन पहले तुम , जैसा तुम्हें ठीक लगे , वैसे मेरे इस प्रश्न का उत्तर दो । मोगल्लान गणक ! अब यह बताओ कि क्या राजगृह की ओर जाने वाले मार्ग को अच्छी तरह जानते हो ? ” ” हे तथागत ! मैं निश्चय से राजगृह की ओर जाने वाले मार्ग को अच्छी तरह जानता हूँ।

अब कोई एक आदमी आता है और राजगृह जाने का मार्ग पूछता है । ” लेकिन उसे जो रास्ता बताया जाता है , उसे छोड़कर वह गलत रास्ता पकड़ लेता है और चल देता है , पूर्व की बजाय पश्चिम की ओर चल देता है । ” तब एक दूसरा आदमी आता है और वह भी रास्ता पूछता है और तुम उसे भी ठीक – ठीक वैसे ही रास्ता बता देते हो । वह तुम्हारे बताए रास्ते पर चलता है और सकुशल राजगृह पहुंच जाता है ? ” मोगल्लान गणक बोला , “ मेरा काम तो रास्ता बता देना है ।

” बुद्ध बोले , ” तो मोगल्लान गणक ! मैं भी इस विषय में क्या करता हूं ? तथागत का काम तो केवल रास्ता बता देना है । ” यहां यह संपूर्ण और सुस्पष्ट कथन है कि तथागत किसी को मुक्ति का आश्वासन नहीं देते , वे केवल मुक्ति – पथ के प्रदर्शक हैं । और फिर मुक्ति या निजात क्या है ? हज़रत मुहम्मद तथा ईसा मसीह के लिए मुक्ति या निजात का मतलब है पैगंबर की मध्यस्थता के कारण रूह का दोज़ख ( नरक ) जाने से बच जाना ।

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बुद्ध के लिए ‘ मुक्ति ‘ का अर्थ है ‘ निब्बाण ‘ , और ‘ निब्बाण ‘ का अर्थ है वासनाओं पर नियंत्रण| ऐसे धम्म में ‘ मुक्ति ‘ का आश्वासन या वचन – बद्धता कैसे हो सकती है ?

साधु साधु साधु

सन्दर्भ – बुध्द और उनका धम्म

राजेन्द्र के. निब्बाण
9467789014

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