Buddh se vishakha ne var manga विशाखा ने बुध्द से वर मांगे।।शाखा ने बुध्द से वर मांगे।।

Buddh se vishakha विशाखा ने बुध्द से वर मांगे।।

विशाखा ने बुध्द से वर मांगे।।

विशाखा सवत्थी की एक बहुत धनवान महिला थी उसके अनेक पुत्र पोत्र थे
जब तथागत सावत्थी में विहार कर रहे थे तो विशाखा वहां पहुंची जहां तथागत ठहरे हुए थे और उन्हें अगले दिन के लिए भोजन का आमंत्रण दिया जिसे तथागत ने स्वीकार कर लिया
उस रात और दूसरे दिन सुबह भारी वर्षा हुई भिक्खुओ ने अपने चिवरों को सूखा रखने के लिए उतार दिया और सारी रात वर्षा अपने नंगे शरीर पर पड़ने दी
जब दूसरे दिन तथागत भोजन समाप्त कर चुके तो विशाखा एक नीचा आसन लेकर तथागत के निकट ही बैठ गई और विनम्रता पूर्वक बोली हे तथागत मैं आपसे आठ वर चाहती हूं (Buddh se vishakha ne var manga विशाखा ने बुध्द से वर मांगे।।)

तथागत ने उत्तर दिया विशाखा तथागत बिना जाने कोई वर नहीं देते
विशाखा ने फिर निवेदन किया हे तथागत जो वर में मांगने जा रही हूं वे उचित है और आपत्ति रहित है
तथागत से वर मांगने की अनुमति मिल जाने पर विशाखा यू बोली हे तथागत मैं चाहती हूं कि जीवन भर प्रत्येक वर्षा काल में मैं भिक्खु संघ को चीवर दान कर सकूं , बाहर से आने वाले तथा बाहर जाने वाले भिक्खुओ को भोजन दान कर सकूं , रोगियों को भोजन दान कर सकूं , रोगियों की सेवा सुश्रुषा करने वाले को भोजन दे सकूँ , रोगियों को दवा दे सकूं , पायस ( खीर ) का दान कर सकूं और भिक्खुनियों के लिए नहाने के वस्त्रों का दान कर सकूं

तथागत बोले

विशाखा इन आठ वरों को मांगने का तेरा क्या प्रयोजन है
विशाखा ने उत्तर दिया हे तथागत मैंने अपनी नौकरानी को आज्ञा दी कि तू विहार में जा और भिक्खु संघ को सूचित कर कि भोजन तैयार है मेरी नौकरानी वहां गई लेकिन जब है विहार पहुंची उसने देखा कि पानी बरसते समय सारे भिक्खु निर्वस्त्र थे उसने सोचा यह लोग भिक्खु नहीं है यह नग्न तपस्वी है जो अपने शरीर पर पानी पड़ने दे रहे हैं अतः वह लौट आई और उसने मुझे वह सारा हाल बताया तब मुझे उसको दोबारा भेजना पड़ा
तथागत नग्नता अशुचि पूर्ण है बुरी बात है हे तथागत यही कारण है और यही प्रयोजन है कि मैं जीवन भर भिक्खु संघ को वर्षा ऋतु में पहनने के लिए विशेष वस्त्र दान में देना चाहती हूं.

मेरी दूसरी इच्छा का कारण यह है कि बाहर से आने वाले भिक्खु सीधे रास्तों से अपरिचित होते हैं वह ऐसे स्थान नहीं जानते जहां भोजन मिल सके वह मार्ग में चलते हुए और भोजन खोजते हुए थक जाते हैं हे तथागत यही कारण है और यही प्रयोजन है कि मैं जीवन भर आगंतुक भिक्खुओ को भोजन दान देना चाहती हूं.
तीसरी मांग इसलिए है कि बाहर जाने वाले भिक्खु यदि भिक्खाटन के लिए जाएंगे तो वह शेष भिक्खुओ से पीछे छूट सकते हैं अथवा जहां वह पहुंचना चाहते हैं वहां बहुत विलंब से पहुंचेंगे और वह वहां से थके थकाए रवाना होंगे
चौथे यदि एक बीमार भिक्खु को ठीक से पथ्य ना मिले तो उसका रोग बढ़ सकता है और वह मर भी सकता है
पांचवे जो भिक्खु रोगी की सेवा सुश्रुषा में लगे हैं उन्हें अपने लिए भिक्खाटन का समय ही नहीं मिल सकता
छठे यदि रोगी भिक्खु को ठीक औषधि ने मिले तो उसका रोग बढ़ सकता है वह मर भी सकता है.

सातवें हे तथागत मैंने सुना है कि तथागत ने पायस ( खीर ) की प्रशंसा की है क्योंकि इससे बुद्धि को स्फूर्ति मिलती है भूख प्यास दूर हो जाती है स्वस्थ मनुष्य के लिए यह पूरा भोजन है और रोगी के लिए एक प्रकार की दवा है इसलिए मैं अपने जीवन भर भिक्खुओ को पायस का दान देना चाहती हूं
हे तथागत अंत में मेरा कहना है कि भिक्खुनियाँ अचिरवती नदी में स्नान करने की आदी है जहां गणिकाए ( वैश्याएं ) भी नहाती है हे तथागत वे गणिकाएं यह कहकर भिक्खुनियाँ का मजाक उड़ाती है कि इस तरुण अवस्था में निर्मलता का पालन करने से तुम्हें क्या लाभ है जब बूढ़ी हो जाओ तब निर्मलता का पालन कर लेना इससे तुम्हारे दोनों हाथों में लड्डू रहेंगे हे तथागत स्त्री के लिए नग्नता बहुत बुरी है घृणित है घिनोनी है.

विशाखा ने सविनय कहा हे तथागत

यह परिस्थितियां हैं यही प्रयोजन है
तब तथागत ने प्रश्न किया विशाखा लेकिन किस लाभ को ध्यान रखकर तूने यह वर मांगे
विशाखा ने उत्तर दिया हे तथागत विभिन्न स्थानों में वर्षावास करके भिक्खु तथागत के दर्शनार्थ सावत्थी आएंगे और तथागत के पास आकर वे पूछेंगे तथागत अमुक ओर अमुक भिक्खु का शरीरांत हो गया है
और तब मैं उन भिक्खुओ के पास जाकर पूछूंगी क्या इस भिक्खु ने कभी श्रावस्ती में निवास किया है यदि वे कहेंगे कि हां तो मैं इस परिणाम पर पहुंचूंगी की अवश्य उसने वर्षावास के लिए चीवर प्राप्त किया होगा या आगंतुक भिक्खुओ का आहार प्राप्त किया होगा या जाने वाले भिक्खुओ का आहार प्राप्त किया होगा या रोगी का भोजन प्राप्त किया होगा या रोगी सुश्रुषक का भोजन प्राप्त किया होगा अथवा रोगी के लिए रखी औषधि प्राप्त की होगी अथवा नित्य मिलने वाली पायस प्राप्त की होगी.

तब मेरे मन में प्रसन्नता पैदा होगी प्रसन्नता से आनंद उपजेगा ओर आनंदित होने से सारा शरीर शांति को प्राप्त होगा इस प्रकार शांत होने पर मुझे सन्तोष की आनंददायी अनुभूति होगी और उस सुख की अनुभूति में मुझे हृदय की शांति प्राप्त होगी यह एक प्रकार से मेरे लिए श्रद्धा बल आदि तथा सात संबोधी अंगों की प्राप्ति होगी तथागत मैंने अपने लिए यही कुशल कर्म सोचकर इन आठ वरों की मांग की है.

तब तथागत ने कहा विशाखा

यह ठीक है यह ठीक है कि तूने यह लाभ सोचकर तथागत से यह आठ वर मांगे जो दान के पात्र हैं उन्हें दान दिया जाता है वह अच्छी भूमि में बीज डालने के समान है जिससे बहुलता में फल प्राप्त होते हैं लेकिन जो राग द्वेष के वशीभूत हैं उनको दिया गया दान खराब भूमि में बीज डालने के समान है इस प्रकार दान ग्रहण करने वाले के राग द्वेष कुशल कर्म की वृद्धि में बाधक हो जाते हैं
तत्पश्चात तथागत ने इन शब्दों से में दानानुमोदन किया जीवन में शील संपन्न तथागत की उपासिका प्रसन्न चित्त से लोभ रहित होकर जो कुछ भी दान देती है उनका वह दान दुख के नाश का तथा सुख की प्राप्ति का कारण होता है.

एक आनंददायी जीवन प्राप्त करके वह नैतिक भ्रष्टाचार तथा अपवित्रता से दूर रहकर धम्मपथ पर अग्रसर होती है
कुशल कर्म करके वह सुख को प्राप्त होती है और अपने दान कर्मों से हर्षित होती है
विशाखा ने पूर्व आराम विहार संघ को दान कर दिया वह दान शील गृहस्थ उपसिकाओं में अग्रणी थी.Buddh se vishakha ne var manga विशाखा ने बुध्द से वर मांगे।।

सन्दर्भ ग्रंथ ” बुद्ध और उनका धम्म “

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