वैशाली में अकाल और महामारी की विपदा में बुद्ध और रतन सुत्त की महिमा….
एक बार वैशाली में भयंकर दुर्भिक्ष (अकाल) फिर बीमारी फैल गई. काफी लोग मरने लगे. जिंदा लोग भी भय व बेचैनी से अधमरे हो गए. गणराज्य का राजा भी प्रजा का दुख झेल नहीं पा रहा था.
आखिर राजा व प्रजा की प्रार्थना पर गौतम बुद्ध भिक्षु संघ के साथ वर्षावास के लिए वैशाली गए. हर दिन राजकुल व हजारों लोग बुद्ध की देशना सुनने आने लगे.
बुद्ध ने कहा, अकाल और महामारी का कारण मनुष्य स्वयं है, ईश्वरीय नहीं है. वैशाली में अधिकतर जंगल काट दिए हैं. वनस्पति, जीव जंतु व मनुष्य का संतुलन बिगड़ गया है ऐसे में अकाल, कुपोषण व महामारी आना स्वाभाविक है .हमें प्रकृति के नियमों का पालन करना चाहिए. यही धम्म है. बुद्ध ने देशना व रत्तनसुत्त संगायन किया.
बुद्ध, धम्म और संघ… ये बुद्ध की शिक्षाओं के तीन रत्न है. इसी के मार्ग पर चलते हुए मानव अपने दुखों से मुक्ति पा सकता है. बुद्ध ने सतरह सुत्रों में बुद्ध, धम्म व संघ की विस्तृत देशना में महिमा की . लोगों को क्रोध, लोभ, भय व दुख मुक्ति का मार्ग बताया और वैशाली की प्रजा के सुख शांति व कल्याण की कामना की.
धीरे धीरे लोगों का मनोबल बढा. अंधविश्वासों की बजाय प्रकृति की महिमा व स्वयं की क्षमता को पहचाना. भय मिट गया. विपदा से लड़ने का साहस जगा. सकारात्मक भाव बहने लगा. प्रकृति के नियमों के पालन का तय किया.
और संयोग से वर्षावास के दिनों में ही अच्छी वर्षा हो गई. नदियां फिर बहने लगी. चारों ओर हरियाली व प्रजा में खुशहाली छा गई. वर्षावास पूरा होने पर राजा व प्रजा ने बुद्ध व भिक्षु संघ का वंदन कर विदा किया.
पालि भाषा में रतन सुत्त के सतरह सुत्रों का विपदा में पठन किया जाता है. यह बहुत कल्याणकारी है. आप भी सुरीली राग व श्रद्धा से पठन किए गए रत्तनसुत्त को इस लिंक से जरूर सुने..
https://youtu.be/YIcPy-Wx4io
भवतु सब्ब मंगल…… सभी निरोगी हो
प्रस्तुति : डॉ एम एल परिहार