प्रकृति नामक चांडालिका की पब्बज्जा
एक समय तथागत सावस्थि ( श्रावस्ती ) में अनाथपिण्डिक के जेतवन में विहार कर रहे थे। ऐसा हुआ कि तथागत के शिष्य आंनद भिक्खाटन के लिए नगर में गए हुए थे । भोजनपरांत आनन्द पानी पीने के लिए नदी की ओर जा रहे थे। उन्होंने एक लड़की को देखा जो नदी से घड़े में पानी भर रही थी । आनंद ने उससे पानी मांगा । लडकी का नाम प्रकृति था । पानी देने से इंकार करते हुए वह बोली , चांडाल – कन्या हूं । मैं पानी नहीं दे सकती । ” आनंद ने कहा , ” मुझे पानी चाहिए । मुझे तुम्हारी जाति नहीं चाहिए । ” लड़की ने आनंद को अपने बर्तन से कुछ पानी दिया । इसके बाद आनंद जेतवन लौट आए । लड़की ने आनंद का पीछा किया और देख लिया कि वह कहां ठहरे हुए थे और यह भी जान लिया कि उनका नाम आनंद था तथा बुद्ध के शिष्य थे । घर लौट कर उसने अपनी मां मातंगी से सारा वृत्तांत कहा और जमीन पर लेट कर रोने लगी । मां ने रोने का कारण पूछा , तो लड़की ने सारी कहानी कह सुनाई और कहा , “ यदि तुम मेरा विवाह करना चाहती हो , तो में केवल आनंद से ही विवाह करूंगी । मैं किसी अन्य से विवाह नहीं करूंगी । ” माता पता लगाने चल दी । लौट कर लड़की से बोली कि ऐसा विवाह असंभव है क्योंकि आनंद बौद्ध भिक्खु हैं । वह यह बात सुनी तो लड़की बहुत दुखी हुई । उसने खाना – पीना छोड़ दिया । वह यह सब मानने के लिए तैयार नहीं थी और अपने निर्णय को भाग्य का निर्णय कहने लगी । इसलिए उसने कहा , ” मां ! तुम तो जादू – टोना जानती हो न ? तो तुम इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए जादू – टोना क्यों नहीं करतीं ? ” मां बोली , ” मैं देखूगी कि क्या हो सकता है । ” मातंगी ने आनंद को अपने घर पर भोजन के लिए आमंत्रित किया । लड़की बहुत प्रसन्न हुई । मातंगी ने तब आनंद से कहा कि उसकी लड़की उनसे शादी करने के लिए अत्यंत उत्सुक है । आनंद ने उत्तर दिया , ” मैं भिक्खु हूं इसलिए मैं किसी भी स्त्री से विवाह नहीं कर सकता । ” मातंगी बोली , ” यदि तुम मेरी लड़की से विवाह नहीं करोगे , तो वह आत्महत्या कर लेगी । उसकी तुम्हारे प्रति इतनी अधिक आसक्ति है । ” आनंद ने उत्तर दिया , ” मैं असमर्थ हैं । मातंगी घर के अंदर गई और लड़की को बताया कि आनंद ने विवाह करने से स्पष्ट मना कर दिया है। लड़की चिल्लाई, मां तुम्हारा जंतर – मंतर कहा गया ? ” मातंगी बोली , ” मेरा जंतर मन्तर तथागत के विरुद्ध असर नहीं कर सकता । ” लड़की चिल्लाई, मां ! दरवाजा बंद कर दे और उसे बाहर न जाने दे । मैं सुनिश्चित कर कि आज ही रात में यह मेरा पति बन जाए । ” मां ने वैसा ही किया , जैसा लड़की चाहती थी । रात होने पर मां ने कमरे में बिस्तार लगा लड़की ने अपने आप को अच्छी तरह अलंकृत किया और अंदर आई । किन्तु , आनंद पर इसका कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा । अंत मे मां ने कमरे में आग जला दी । मां ने आनंद के कपड़ों को पकड़ा और बोली , ” यदि भी मेरी लड़की से विवाह करना स्वीकार नहीं करते तो मैं तुम्हें आग में झोंक जब भी आनंद नहीं झुके । मां और लड़की ने अपने को असमर्थ जानकर आनंद को स्वतंत्र कर दिया । वापस जाकर आनंद ने सारी आप – बीती तथागत को कह सुनाई । इसरे दिन वह लड़की आनंद को खोजती हुई जेतवन पहुंची । आनंद भिक्खाटन के लिए निकल रहे थे । उन्होंने उस लड़की को देखा तो उससे बचकर निकलना चाहा । लेकिन जहां भी आनंद गए , लड़की ने उनका पीछा किया । जब आनंद लौटे तो उन्होंने देखा कि वह लड़की जेतवन विहार के द्वार पर उनकी प्रतीक्षा कर रही थी । आनंद ने तथागत को बताया कि किस प्रकार वह लड़की उनका पीछा कर रही है । तथागत ने उसे बुलवाया । जब लड़की सामने आई तो तथागत बुद्ध ने प्रश्न किया , ” तु आनंद का पीछा क्यों कर रही है?” लड़की ने उत्तर दिया कि वह उससे विवाह करने की इच्छुक है । वह बोली , ” मैंने सुना है कि वह अविवाहित है । मैं भी अविवाहित हूं । “ तथागत बुद्ध बोले , “ आनंद एक भिक्खु है । उसके सिर पर बाल नहीं हैं । यदि तुम भी उसी की तरह मुंडन करा लो तो मैं देखूगा कि क्या कुछ किया जा सकता है । ” लड़की बोली , ” मैं इसके लिए तैयार हूं । ” तथागत बुद्ध ने कहा , ” मुंडन कराने से पूर्व तुम्हें मां से अनुमति लेनी होगी । लड़की अपनी मां के पास आई और बोली , “ मां ! जो तुम नहीं कर सकी , वह मैंने कर लिया । तथागत बुद्ध ने आश्वासन दिया है कि यदि में मुंडन करा लूं तो वह आनंद से मेरा विवाह करा देंगे । ” मां क्रुद्ध होकर बोली , ” तुम्हें ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए । तुम मेरी लड़की हो और तुम्हें बाल रखने चाहिएं । तुम आनंद जैसे समण से विवाह करने के लिए क्यों इतनी इच्छुक हो ? मैं किसी अच्छे आदमी से तुम्हारा विवाह करवा दूंगी । ” उसने उत्तर दिया , “ या तो मैं आनंद से विवाह करूंगी या फिर मर जाऊंगी । मेरे लिए और कोई तीसरा रास्ता नहीं है । ” मां बोली , ” तुम मेरा अपमान क्यों कर रही हो ? ” लड़की बोली , “ यदि मैं तुम्हें प्रिय हूँ तो जैसा मैं चाहती हूं मुझे वैसा ही करने दो । ” मां ने अपना विरोध वापस ले लिया और लड़की ने मुंडन करा लिया।तब लड़की तथागत बुद्ध के सामने उपस्थित हुई और बोली , “ आपके आदेश के अनुसार मैंने अपना मुंडन करा लिया है । ” तब तथागत ने कहा , ” तू क्या चाहती है ? उसके शरीर का कौन सा प्रेम है ? ” लड़की बोली , ” मैं उसकी नाक से प्यार करती हूं । मैं उसके मुँह से प्यार करती हूं । मैं उसके कानों से प्यार करती हूं । मैं उसकी आवाज़ से प्यार करती हूँ । मैं उसकी चाल से प्यार करती हूं । ” तब तथागत बोले , ” क्या तुम जानती हो कि आंखें आंसुओं का घर है। नाक गन्दगी का घर है । मुंह थूक का घर है । कान मैल का घर है , और शरीर मल मूत्र का पात्र है । ” जब स्त्री – पुरुष संसर्ग करते हैं तो ये बच्चों को जन्म देते हैं । लेकिन जहां जन्म है, वहीं मृत्यु भी है । जहां मृत्यु है , वहीं दुख भी है । लड़की ! मैं नहीं जानता कि तुम आनंद से विवाह करके क्या पाओगी ? ” लड़की गंभीरतापूर्वक सोचने लगी और इस बात पर सहमत हो गई कि आनंद के साथ विवाह करना बेकार है , जिसके लिए वह इतनी अधिक इच्छुक थी । उसने अपना यह निष्कर्ष तथागत को बता दिया । तथागत को अभिवादन करके लड़की बोली , ” अज्ञान के वशीभूत होकर ही मैं आनंद के पीछे लगी थी । अब मेरी आंखें खुल गई हैं । मैं उस नाविक की तरह हूं जिसकी नौका एक दुर्घटना के बाद दूसरे किनारे लग जाए । मैं एक अरक्षित वृद्ध प्राणी की तरह है जिसे सुरक्षा मिल गई है । मैं उस अंधे की तरह हूं जिसे नई दृष्टि प्राप्त हो गई है । तथागत ने अपनी प्रज्ञाभरी शिक्षा द्वारा मुझे निद्रा से जगा दिया है । ”
“ धन्य है , हे प्रकृति ! यद्यपि तू चांडाल – कन्या है किंतु फिर भी तू श्रेष्ठ पुरुषों और स्त्रियों के लिए आदर्श प्रस्तुत करेगी । तू निम्न जाति की है लेकिन ब्राह्मण तुम से शिक्षा ग्रहण करेंगे । न्याय तथा निर्मलता के पथ से विचलित न होना । तेरी कीर्ति राज – सिंहासन पर बैठी हुई रानियों की कीर्ति से भी बढ़ कर होगी । ” विवाह करने में असफल हो जाने पर उसके सामने ” भिक्खुणी – संघ ” में प्रविष्ट से अतिरिक्त दूसरा मार्ग न था । उसने इच्छा प्रकट की तो वह भिक्खुणी – संघ में प्रविष्ट कर ली गई।
साधु साधु साधु
सन्दर्भ. बुध्द और उनका धम्म
राजेन्द्र के. निब्बाण
9467789014