Gautam buddha कहते है संसार में सुख-दुख हो या रोग-निरोग. सब अनित्य है, सब परिवर्तनशील है. कोई स्थायी नहीं है. हालात जरूर बदलते है इसलिए आशा की किरण चमकाएं रखे.जिंदगी है तो संघर्ष हैं, तनाव है,चिंता है, ख़ुशी है, डर है, सुख है दुख है लेकिन ये सभी अनित्य है,स्थायी नहीं हैं, परिवर्तनशील है. समयरूपी नदी के प्रवाह में सब बह जाते हैं. हर परिस्थिति जरूर बदलती है.
इसलिए कोई भी परिस्थिति चाहे रोग हो या निरोग, ख़ुशी हो या ग़म, कभी स्थायी नहीं होती. ऐसा अधिकतर होता है कि जीवन यात्रा में हम कई बार अपने आप को दुःख, तनाव, चिंता, डर, हताशा, निराशा,भय, रोग आदि के मकड़जाल में फंसा हुआ पाते हैं.
गौतम बुद्ध Gautam buddha
हम ऐसी हालात के इतने वशीभूत हो जाते हैं कि दिलोदिमाग मे वही छाया रहता है. दूर दूर तक कहीं से भी प्रकाश या आशा की किरण दिखाई नहीं देती है. दूर से चींटी की तरह लगने वाली परेशानी नजदीक आते आते हाथी जैसा रूप धारण कर लेती है. हम उसके कमजोर रुप को भी विशाल व भयावह समझकर उसके आगे समर्पण कर देते हैं. परिस्थितियों को अपने ऊपर हावी हो जाने देते हैं.
यही परिस्थिति हमारे पूरे वजूद को हिला डालती है. हमें हताशा, निराशा के भंवर में उलझा जाती है. हमे एक एक क्षण पहाड़ जैसा प्रतीत होता है और ज्यादातर लोग उसके आगे घुटने टेक देते हैं. हालात से मुकाबला करने का साहस खो देते हैं. इसलिए तथागत कहते है कि यदि हम किसी भी अनजान, निर्जन दुख या रोग की विपदा के सूखे रेगिस्तान मे फंस जाएं तो उससे निकलने का एक ही उपाय है. बस हम चलते रहें,चलते रहे. यदि हम नदी के बीच जाकर अपने हाथ पैर नहीं चलाएंगे तो निश्चित ही डूब जाएंगे.
इसलिए जीवन मे ऐसे क्षण भी आते है जब लगता है कि बस..अब तो चारों ओर अंधेरा है,अब कुछ भी उम्मीद नहीं है, ऐसी परिस्थिति में अपने आत्मविश्वास और साहस के साथ डटे रह कर मुकाबला करना चाहिए क्योंकि हर समस्या या परिस्थिति का हल होता हैं, आज नहीं तो कल होता हैं. हर दशा बदलती है. प्रयास जारी रखो. चलते रहो लेकिन सही दिशा में चलो, चलने की गति की बजाय दिशा महत्वपूर्ण है.
भवतु सब्ब मंगलं
सभी निरोगी हो
प्रस्तुति : डॉ एम एल परिहार.
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