☸️सामाजिक क्रान्ति के अग्रदूत राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फुले☸️
सामाजिक क्रान्ति के अग्रदूत राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रेल, 1827 को पुणे, महाराष्ट में हुआ था। उन्हें 19वीं सदी का प्रमुख समाज सुधारक माना जाता है, वह आधुनिक भारत के सामाजिक कान्ति के अग्रदूत थे। ज्योतिबा फूले ने पुरानी रूढिगत समाज व्यवस्था के विरूद्ध बगावत और हजारों वर्षो से चली आ रही धार्मिक तानाशाही व अंधविस्वास को चुनौती देकर उसके अंजर-पंजर ढीले कर देने वाले वे कर्मठ समाज-सधारक, सच्चे अर्थो में मानवतावादी महात्मा थे।
महात्मा या महापुरूष वही होता है, जो समग्र समाज को समानता, स्वतंत्रता, तथा बंधुता का लाभ दिलाने के लिए सघर्ष करता है, जो किसी से घृणा नहीं करता है और जो मानव के प्रति समभाव से प्रेम व करूणा से प्रेरित होकर मानवाधिकारों के लिए लड़ता है।
ज्योतिबा फुले ने समाज की प्रगति में बाधक कुरीतियों व रूढ़ियों को तोड़कर समाज को एक नया तार्किक रास्ता दिखया। ज्योतिबा फुले समाज को विषमतावादी धार्मिक गुलामी से मुक्त कराना चाहते थे। वे समाज को धार्मिक, सामजिक, पंथों, संप्रदायों के संकीर्ण दायरे से निकालकर मानव-धर्म के महासागर में ले जाना चाहते थे।
उन्होंने भारतीय समाज में फैली कई सामाजिक कुरीतियों, आडंबरों, धार्मिक कर्मकांडों, पाखंडो व अंधविस्वासों के खिलाफ जन जागृति फैलाकर मानवतावादी विचारधारा की स्थापाना की। शूद्रों, अतिशूद्रों के उद्धार, नारी शिक्षा, विधवा विवाह और शोषण के शिकार किसानों के हित के लिए ज्योतिबा फुले ने अतुलनीय योगदान दिया है। उन्होंने सत्य शोधक समाज नामक संस्था की स्थापना कर समाज में गरीब, शोषित, नारी, शूद्रों के अपमान व शोषण के खिलाफ आवाज उठायी तो शूद्र व स्त्रियों की शिक्षा के लिए स्कूल खोले, जातीय ऊंच-नीच पर करारा हथौड़ा चलाते हुए अपने घर के कुए को अछूतों के लिए सार्वजनिक तौर पर खोल दिया।
“सामाजिक क्रान्ति के अग्रदूत राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फुले “ की महानता इसी बात से स्पष्ट हो जाती है कि वे तत्कालीन समाज को धर्म युग (The Act Of Religion)से निकालकर तर्क-युग (The Act Of Reason) में हमे ले आये, वे समाज को धार्मिक पांखण्ड, कर्मकाण्ड व अंधविस्वास के पारम्परिक ब्राह्मणवादी अंधयुग से तर्क, विज्ञान व बुद्धिवाद के आधुनिक युग में ले आये ज्योतिबा फुले के अथक प्रयासों का ही फल है कि आज न्याय, शिक्षा, ज्ञान, तार्किकता, नैतिकता, कार्यशीलता तथा प्रगति में बाधा उत्पन्न करने वाला पहाड़ नष्ट-सा हो गया है ।
राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फुले यूरोप के महान क्रांतिकारी कार्ल मार्क्स के समकालीन थे इन दोनों के कार्यो का उद्देश्य एक था। मेहनतकशो, शोषितों तथा पीड़ितों को शोषण तथा ठगी से मुक्त कराना और अज्ञान व अन्याय को हमेशा के लिए दफना देना। लेकिन इन दो युगपुरूषों के कार्य के रूपों में बड़ा अतंर था उस वक्त युरोप में मशीनी युग आ चुका था, जबकि भारत तंत्र-मत्रं-युग में ही था जब कार्ल मार्क्स ज्ञान के शिखर पर खड़े होकर मजदूर-वर्ग को सत्ताधारी बनने के लिए ललकार रहे थे तब ज्योतिबा फुले अज्ञान तथा अंधकार की गहरी सुरंग में शुद्रो, अतिशुद्रों तथा नारी वर्ग को ज्ञान रूपी प्रकाश की पहली किरण दिखा रहे थे। ज्योतिबा फूले ने अज्ञान का कारावास तोड डाला, जन्मजात सामाजिक विषमता का जाल तोड़ दिया, शिक्षा का द्वार सबके लिए खोल दिया और निरर्थक अधंविस्वास को चुनौती देकर हिन्दू समाज में चहुमुखी क्रांति कर दी, इसलिए हम कह सकते हैं कि आधुनिक भारत के इतिहास में ज्योतिबा फूले ने पहली बार सम्पूर्ण सामाजिक क्रांति का शंख फूंका था।
राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फुले कहते थे कि इस जगत का रचियता एक प्रकृति ही है। वह सर्वत्र व्याप्त, निर्गुण, निराकार और सत्यस्वरूप् है। विश्व के सभी स्त्री-पुरूष उसकी संतानें हैं जिस प्रकार मां को प्रसव करने के लिए या पिता से प्रार्थना करने के लिए किसी भी बिचौलिए की जरूरत नही होती है ठीक उसी प्रकार सर्वव्यापी सृष्टि कर्ता की आराधना के लिए भी किसी पंडे-पुरोहित, पादरी, मौलवी जैसे की जरूरत नहीं है हर मनुष्य अपनी धार्मिक विधियां स्वयं कर सकता हैं, मनुष्य अपनी जाति से नही, कर्मो से श्रेष्ठ बनता हैं।
राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फुले व्यक्ति नहीं, शक्ति थे। उनके न व्यक्तिगत मित्र थे, न व्यक्तिगत शत्रु जो लोग मनुष्य-मनुष्य के बीच ऊचं-नीच, विषमता के पक्षधर थे वे उनके शत्रु थे और जो समानता के समर्थक थे वे उनके मित्र। अर्थात जो लोग ज्योतिबा फूले के साथ जुड़े हुए थे वे उनके विचारों से सहमत होकर जुड़े हुए थे।वे सच को सच और झूँठ को झूँठ निर्भीकता से कहते हुए जीवन भर अन्याय के खिलाफ लड़ते रहे उनके इन सद्गुणों की वजह से ही आधुनिक भारत के निर्माता और सिम्बल ऑफ नॉलेज डॉ बाबा साहब अम्बेडकर ने उन्हें अपना गुरु माना है।
महात्मा ज्योतिबा फूले का परिनिर्वाण 28 नवम्बर 1890 को हुआ, हालांकि आज वे हमारे बीच नहीं हैं लेकिन वे सामाजिक क्रान्ति के अग्रदूत के रूप मे विश्व मे अटल ध्रुव तारे की तरह चमक रहे हैं और युगों युगों तक मानवता को प्रेरित करते रहेंगे।