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महान सेविका सावित्रीबाई फुले प्लेग महामारी में सेवा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुई.
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दुनिया को कई बार प्लेग, चेचक व हैजा जैसी महामारियों का मुकाबला करना पड़ा. ऐसी विपदा में मानव समाज को खुशहाल देखने वाले लोगों के त्याग व बलिदान को हमेशा याद किया जाता है.
सन् 1896 में भारत में प्लेग का भयंकर प्रकोप फैल गया. ब्रिटिश सरकार ने ऐसे रोगों को काबू करने के लिए पहली बार ‘ऐपिडेमिक (महामारी) कंट्रोल एक्ट 1896’ निकाला लेकिन रुढिवादियों ने विरोध किया. प्लेग से सबसे ज्यादा मुंबई व पुणे शहर प्रभावित थे. आसपास गांवों में भी फैल गया. हर दिन सैकड़ों लोगों की मौतें हो रही थी. आधुनिक चिकित्सा व्यवस्थाएं व्यापक नहीं थी, ना प्रभावी वैक्सीन.
इसी दौरान भारत की पहली शिक्षिका सावित्रीबाई फुले ने पुणे में एक विशाल केयर सेंटर व क्लिनिक खोला, जहां रोजाना लगभग दो हजार बच्चों को भोजन कराया जाता था और आवश्यक इलाज भी. राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले का देहांत हो चुका था इसलिए सारी जिम्मेदारी सावित्रीबाई फुले व बचपन में गोद लिए हुए पुत्र डॉ यशवंत ने संभाली. सावित्रीबाई बिना थके व बिना आराम किए रात दिन दुखी पीड़ितों की सेवा में लगी रही. इसी दौरान प्लेग रोग से संक्रमित एक बच्ची की देखभाल में वह खुद को भूल ही गई और इस रोग की चपेट में आ गई. मानवता की महान सेवा में लगी हुई सावित्रीबाई आखिर 10 मार्च 1897 को छासठ वर्ष की उम्र में प्लेग के कारण वीरगति को प्राप्त हुई. धन्य हो आपके बलिदान को सावित्रीबाई. नमन है ऐसे मानवतावादियों को जो विपदा में दुखी व पीड़ितों की सेवा करते हैं.
आज कोरोना संकट में मानवसेवा में लगे हुए मेडिकल टीम, प्रशासन व भोजन दान कर रहे सभी वॉरियर्स के महान योगदान को संपूर्ण मानव समाज नमन करता है.
प्लेग का वैक्सीन बनाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने कॉलेरा का वैक्सीन बना चुके और पेरिस के पाश्चर इंस्टीट्यूट में काम कर रहे उक्रेन के साइंटिस्ट वाल्देमर हाफ्किन से अनुरोध किया. उन्होंने बंबई के ग्रांट मेडिकल कॉलेज की लैब में 1897 में वैक्सीन तैयार किया. आज उन्ही के सम्मान में इसे डॉ हाफ्किन इंस्टीट्यूट कहा जाता है. नमन है ऐसे महामानव को.

भवतु सब्ब मंगल
सभी निरोगी हो
आलेख : डॉ. एम एल परिहार

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